ओ ओ ओ ओ ओ ओ
कोई दिन गर ज़िंदगानी और है
कोई दिन गर ज़िंदगानी और है
अपने जी में हमने ठानी और है
कोई दिन गर ज़िंदगानी और है
बारहा देखीं हैं उनकी रंजिशें
बारहा देखीं हैं उनकी रंजिशें
पर कुछ अब के सर-गिराऩी और है
कोई दिन गर ज़िंदगानी और है
दे के ख़त मुँह देखता है नामाबर
दे के ख़त मुँह देखता है नामाबर
कुछ तो पैग़ाम-ए-ज़बानी और है
कोई दिन गर ज़िंदगानी और है
हो चुकी ग़ालिब बलाएँ सब तमाम
हो चुकी ग़ालिब बलाएँ सब तमाम
एक मर्ग-ए-नागहानी और है
कोई दिन गर ज़िंदगानी और है
अपने जी में हमने ठानी और है
कोई दिन गर ज़िंदगानी और है
कोई दिन गर ज़िंदगानी और है