[ Featuring ]
विश्वामित्र समय सुभ जानी
बोले अति सनेहमय बानी
उठहु राम भंजहु भवचापा
मैटहु तात जनक परितापा
सुनि गुरु बचन चरन सिरु नावा
हरष बिषाद न कछु उर आवा
सहज ही चले सकल जग स्वामी
मन मंजुवर कुंजर गामी
उदित उदय गिरी-मंच पर, रघुवर-बाल पतंग
विकसे संत-सरोज सब, हरषे लोचन भृंग