काश की कोई होता जो हमें अपना कहता
ऐसे अकेले कहां तक जिए हम
जो सनम हमको कहता बाहों में लेता
अकेले कहां तक जिए हम
ईक मिली थी मुझे भी ईक सनम थी मेरी भी
उसने पूछा मुझे था कि शादी करोगे
मैं पगला गया था मैं बोला उसे था
की शादी से पहले मै बदलूंगा कैसे
वो बोली मुझे थी कि तुम शादी तो कर लो
बदल जाओगे तुम बिना कुछ किए ही
अब जो सगाई उसी की जो होने लगी है
मैं चाहता हूं दूल्हा मैं उसी का ही होता
पर उसने मुझे भी बुलाया नहीं है
मैं तनहा ही तनहा ही तनहा ही तनहा
इस गम के समंदर में तैर रहा हूं
वो खुशियों की नौका में बैठी हुई है
अपने सनम की बाहों में सिमटी हुई है
मैं चाह कर भी उसको अलविदा कह ना पाया
और वो है कि रुकना चाहती नहीं है