ये आरज़ू थी के हंसकर कोई मिला होता
कही तो हमसे किसी का दिल आशना होता
किसी ने भी तो न देखा निग़ाह भरके मुझे
किसी ने भी तो न देखा निग़ाह भरके मुझे
गया फिर आज का दिन भी उदास करके मुझे
किसी ने भी तो न देखा निग़ाह भरके मुझे
गया फिर आज का दिन भी उदास करके मुझे
किसी ने भी तो न देखा निग़ाह भरके मुझे
सबा भी लायी न कोई पयाम अपनों का
सबा भी लायी न कोई पयाम अपनों का
सुना रही है फ़साने इधर उधर के मुझे
गया फिर आज का दिन भी उदास करके मुझे
किसी ने भी तो न देखा निग़ाह भरके मुझे
माफ़ कीजे जो मैं अजनबी हूँ महफिल मे
माफ़ कीजे जो मैं अजनबी हूँ महफिल मे
के रास्ते नहीं मालूम इस नगर के मुझे
गया फिर आज का दिन भी उदास करके मुझे
किसी ने भी तो न देखा निग़ाह भरके मुझे
वो दर्द है के जिसे सह सकूँ न केह पाऊँ
वो दर्द है के जिसे सह सकूँ न केह पाऊँ
मिलेगा चैन तो अब जान से गुजरके मुझे
गया फिरा आज का दिन भी उदास करके मुझे
किसी ने भी तो न देखा निग़ाह भरके मुझे
गया फिर आज का दिन भी उदास करके मुझे
किसी ने भी तो न देखा निग़ाह भरके मुझे
निगाह भरके मुझे
निगाह भरके मुझे