नज़र आती नहीं मंज़िल तड़पने से भी क्या हासिल
तक़दीर में ऐ मेरे दिल अंधेरे ही अंधेरे हैं
नज़र आती नहीं मंज़िल
मजबूरी ने जिसको मारा उसका कौन सहारा
मांझी तो मिल जाते हैं पर मिलता नहीं किनारा
तक़दीर में ऐ मेरे दिल अंधेरे ही अंधेरे हैं
नज़र आती नहीं मंज़िल
नैनों से यूँ छिन गई ज्योती सीप से जैसे मोती
एक जान और सौ दुश्मन हैं काश ये जान न होती
तक़दीर में ऐ मेरे दिल अंधेरे ही अंधेरे हैं
नज़र आती नहीं मंज़िल
खलती है ये पास की दूरी
जलती आस अधूरी
किसको कोई दोष लगाए
सबके संग मजबूरी
तक़दीर में ऐ मेरे दिल अंधेरे ही अंधेरे हैं
नज़र आती नहीं मंज़िल तड़पने से भी क्या हासिल
तक़दीर में ऐ मेरे दिल अंधेरे ही अंधेरे हैं
नज़र आती नहीं मंज़िल