ख़ुश रहो अहल-ए-चमन हम तो चमन छोड़ चले
ख़ुश रहो अहल-ए-चमन
ख़ाक़ परदेस की छानेंगे वतन छोड़ चले
ख़ुश रहो अहल-ए-चमन
भूल जाना हमें हम याद के क़ाबिल ही नहीं
भूल जाना हमें हम याद के क़ाबिल ही नहीं
क्या पता दें कि हमारी कोई मंज़िल ही नहीं
अपनी तक़दीर के दरिया का तो साहिल ही नहीं
ख़ुश रहो अहल-ए-चमन
कोई भूले से हमें पूछे तो समझा देना
एक बुझता हुआ दीपक उसे दिखला देना
आँख जो उसकी छलक जाए तो बहला देना
ख़ुश रहो अहल-ए-चमन
रोज़ जब रात के आँचल में सितारे होंगे
ये समझ लेना कि वो अश्क़ हमारे होंगे
और किस हाल में हम दर्द के मारे होंगे
ख़ुश रहो अहल-ए-चमन हम तो चमन छोड़ चले
ख़ुश रहो अहल-ए-चमन