आज सखी मैं बाबुल का घर छोड़ चली
आज सखी मैं बाबुल का घर छोड़ चली
पी की लगन मे सारे नातें
सारे बंधन तोड़ चली
आज सखी मैं बाबुल का घर छोड़ चली
बचपन बिता जहा रंग रलियो मे
आज पराई हू मैं उन गलियो मे
ना मैं लड़ी ना पूरा बोल ही बोली
काहे सजाई मोरी बाबुल डोली
आज सखी मैं बाबुल का घर छोड़ चली
दुख का ये जुदाई का तू हंस हंस के सहना
ये ही तो है इस नगरी की रीत री बहना
रो के विदा होते है होते है जो भी
जिनको विदा करना है रोते है वो भी
आज सखी मैं बाबुल का घर छोड़ चली