जो शमअ जली थी, बुझ के राख हुई है
पर धुआँ चला है, जू-ए-शीर सा
गुल को छूके गुलबदन सी आस ले कर
सामने खड़ा है, इक फ़कीर सा
कासे में अश्क़, कफ़ में आईना ले कर
पनाह को निहारे, राहगीर सा
चाँद की सबा में, चाँदनी पनाह है
ख़्याल में मिला, तो तस्वीर था
शब-ए-इत्तिफ़ाक़ में बना धुआँ है
आँख जो खुली, तो तक़दीर था