सुन सुन कर कोर सदी में आए, दुरंगा क़ोहसार
ना माँगी धूप, ना दुआबा ना परवरदिगार
परदाह-दार ए हुमको फ़िकर नहीं, तू जां निसारने को आ
ना तेरा आना हुमको लाज़िम, ना बिरहा, ना बिरहा
कह कह कर कोर सदी में लाए, दुरंगा असरार
इक आँख में थे तो खुद थे, इक में आँख-ए-आबशार
बे-परदाह हैं हम बे-सुध हैं, निगाह-ए-बुत से लापता
बे-वजह हैं हम बे-खुद हैं, बे-परवाह बे-परवाह