महफ़िल सोई ऐसा कोई
महफ़िल सोई ऐसा कोई
होगा कहाँ जो समझे ज़ुबान मेरी आँखों की
महफ़िल सोई ऐसा कोई
होगा कहाँ जो समझे ज़ुबान मेरी आँखों की
महफ़िल सोई
रात गाती हुई गुनगुनाती हुई
बीट जाएगी यूँ मुस्कुराति हुई
रात गाती हुई गुनगुनाती हुई
बीट जाएगी यूँ मुस्कुराति हुई
सुबह का समान पूछेगा कहाँ
गये मेहमान जो कल थे यहाँ
महफ़िल सोई ऐसा कोई
होगा कहाँ जो समझे ज़ुबान मेरी आँखों की
महफ़िल सोई
आज थम के ग़ज़र दे रहा है कबर
कौन जाने इधर आए ना सहर
आज थम के ग़ज़र दे रहा है कबर
कौन जाने इधर आए ना सहर
किसको पता ज़िंदगी है क्या
टूट हि गया साज़ हि तो था
महफ़िल सोई ऐसा कोई
होगा कहाँ जो समझे ज़ुबान मेरी आँखों कि
महफ़िल सोई