जिन रातों की भोर नहीं है
आज ऐसी ही रात आई
जिन रातों की भोर नहीं है
आज ऐसी ही रात आई
वो जिसे ग़म के डूब गया दिल
सागर की है गहराई
रात के तारो तुम ही बता दो
मेरी वो मज़िल है कहाँ
रात के तारो तुम ही बता दो
मेरी वो मज़िल है कहाँ
पागल बनकर जिसके लिए मैं
खो बैठा हूँ दोनों जहां
पागल बनकर जिसके लिए मैं
खो बैठा हूँ दोनों जहां
जिन रातों की भोर नहीं है
आज ऐसी ही रात आई
राह किसी की हुई न रौशन
जलना मेरा बेकार गया
राह किसी की हुई न रौशन
जलना मेरा बेकार गया
लुट गई तक़दीर मुझे मैं
जित के बाज़ी हार गया
लुट गई तक़दीर मुझे मैं
जित के बाज़ी हार गया
जिन रातों की भोर नहीं है
आज ऐसी ही रात आई
वो जिसे ग़म के डूब गया दिल
सागर की है गहराई
जिन रातों की