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Jagjit Singh - Patthar Ke Khuda Patthar Ke Sanam Lyrics



Jagjit Singh - Patthar Ke Khuda Patthar Ke Sanam Lyrics
Official




पत् थर के ख़ुदा पत् थर के सनम
पत् थर के ही इंसाँ पाए हैं
पत् थर के ख़ुदा पत् थर के सनम
पत् थर के ही इंसाँ पाए हैं
तुम शहर-ए-मुहब् बत कहते हो
तुम शहर-ए-मुहब् बत कहते हो
हम जान बचाकर आए हैं
पत् थर के ख़ुदा पत् थर के सनम
पत् थर के ही इंसाँ पाए हैं

बुतख़ाना समझते हो जिसको
पूछो ना वहाँ क् या हालत हैं
बुतख़ाना समझते हो जिसको
पूछो ना वहाँ क् या हालत हैं
हम लोग वहीं से लौटे हैं
बस शुक्र करो लौट आए हैं
तुम शहर-ए-मुहब् बत कहते हो
तुम शहर-ए-मुहब् बत कहते हो
हम जान बचाकर आए हैं
पत् थर के ख़ुदा पत् थर के सनम
पत् थर के ही इंसाँ पाए हैं

हम सोच रहे हैं मुद्दत से
अब उम्र गुज़ारें भी तो कहाँ
हम सोच रहे हैं मुद्दत से
अब उम्र गुज़ारें भी तो कहाँ
सहरा में खु़शी के फूल नहीं
शहरों में ग़मों के साए हैं

होठों पे तबस् सुम हल् का-सा
आंखों में नमी सी ऐ फ़ाकिर
होठों पे तबस् सुम हल् का-सा
आंखों में नमी सी ऐ फ़ाकिर
हम अहल-ए-मुहब् बत पर अकसर
ऐसे भी ज़माने आए हैं
तुम शहर-ए-मुहब् बत कहते हो
तुम शहर-ए-मुहब् बत कहते हो
हम जान बचाकर आए हैं
पत् थर के ख़ुदा पत् थर के सनम
पत् थर के ही इंसाँ पाए हैं
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पत् थर के ख़ुदा पत् थर के सनम
पत् थर के ही इंसाँ पाए हैं
पत् थर के ख़ुदा पत् थर के सनम
पत् थर के ही इंसाँ पाए हैं
तुम शहर-ए-मुहब् बत कहते हो
तुम शहर-ए-मुहब् बत कहते हो
हम जान बचाकर आए हैं
पत् थर के ख़ुदा पत् थर के सनम
पत् थर के ही इंसाँ पाए हैं

बुतख़ाना समझते हो जिसको
पूछो ना वहाँ क् या हालत हैं
बुतख़ाना समझते हो जिसको
पूछो ना वहाँ क् या हालत हैं
हम लोग वहीं से लौटे हैं
बस शुक्र करो लौट आए हैं
तुम शहर-ए-मुहब् बत कहते हो
तुम शहर-ए-मुहब् बत कहते हो
हम जान बचाकर आए हैं
पत् थर के ख़ुदा पत् थर के सनम
पत् थर के ही इंसाँ पाए हैं

हम सोच रहे हैं मुद्दत से
अब उम्र गुज़ारें भी तो कहाँ
हम सोच रहे हैं मुद्दत से
अब उम्र गुज़ारें भी तो कहाँ
सहरा में खु़शी के फूल नहीं
शहरों में ग़मों के साए हैं

होठों पे तबस् सुम हल् का-सा
आंखों में नमी सी ऐ फ़ाकिर
होठों पे तबस् सुम हल् का-सा
आंखों में नमी सी ऐ फ़ाकिर
हम अहल-ए-मुहब् बत पर अकसर
ऐसे भी ज़माने आए हैं
तुम शहर-ए-मुहब् बत कहते हो
तुम शहर-ए-मुहब् बत कहते हो
हम जान बचाकर आए हैं
पत् थर के ख़ुदा पत् थर के सनम
पत् थर के ही इंसाँ पाए हैं
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Writer: DHIMAN JAGJIT SINGH
Copyright: Lyrics © Royalty Network

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