न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
न था कुछ तो ख़ुदा था कुछ न होता तो ख़ुदा होता
डुबोया मुझ को होने ने न होता मैं तो क्या होता
हुआ जब ग़म से यूँ बे-हिस तो ग़म क्या सर के कटने का
हुआ जब ग़म से यूँ बे-हिस तो ग़म क्या सर के कटने का
न होता अगर जुदा तन से तो ज़ानो पर धरा होता
हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है
हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है
वो हर इक बात पर कहना कि यूँ होता तो क्या होता
कि यूँ होता तो क्या होता
कि यूँ होता तो क्या होता