दिल ही तो है, न संग-ओ-ख़िश्त
दर्द से भर न आए क्यूँ
रोएँगे हम हज़ार बार
कोई हमें सताए क्यूँ
क़ैद-ए-हयात-ओ-बन्द-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
क़ैद-ए-हयात-ओ-बन्द-ए-ग़म अस्ल में दोनों एक हैं
मौत से पहले आदमी ग़म से निजात पाए क्यूँ
दिल ही तो है, न संग-ओ-ख़िश्त
दर्द से भर न आए क्यूँ
रोएँगे हम हज़ार बार
कोई हमें सताए क्यूँ
'ग़ालिब"-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बन्द हैं
'ग़ालिब"-ए-ख़स्ता के बग़ैर कौन से काम बन्द हैं
रोइए ज़ार-ज़ार क्या, कीजिए हाय-हाय क्यूँ
दिल ही तो है, न संग-ओ-ख़िश्त
दर्द से भर न आए क्यूँ
रोएँगे हम हज़ार बार
कोई हमें सताए क्यूँ