हा ना
रक़ीब से वो नज़ारे
फरेब देते रहे
रक़ीब से वो नज़ारे
फरेब देते रहे
हमें तो झुटे सहारे
फरेब देते रहे
रक़ीब से वो नज़ारे
फरेब देते रहे
हाँ आ आ आ आ
हाँ आ आ आ आ
तलाश करने चले हम
कभी खुद को कहीँ
सेया रात के तारे
फरेब देते रहे
हमें तो झुटे सहारे
फरेब देते रहे
रक़ीब से
वो प्यार छोड़ हमारा हाथ थाम चलते थे
फरेब देते रहे वो
हम फरेब खाते रहे
हमें तो झुटे सहारे
फरेब देते रहे
रक़ीब से
वो अपने जिनकी मोहब्बत पे नाज़ था
हमको मोहब्बातों के वो मारे
फरेब देते रहे
हमें तो झुटे सहारे
फरेब देते रहे
रक़ीब से वो नज़ारे
फरेब देते रहे
हाँ ना ना ना
हाँ आ आ आ आ