सखी री बिरहा के दुखड़े सह सह कर जब राधे
बेसुध हो ली तो इक दिन अपने मनमोहन से जा कर यूँ बोली
आज सजन मोहे अंग लगालो जनम सफ़ल हो जाये
आज सजन मोहे अंग लगालो जनम सफ़ल हो जाये
हृदय की पीड़ा देह की अग्नि सब शीतल हो जाये
आज सजन मोहे अंग लगालो जनम सफ़ल हो जाये
कई जुग से हैं जागे मोरे नैन अभागे
कई जुग से हैं जागे मोरे नैन अभागे
कहीं जिया नहीं लागे बिन तोरे सुख देखे नहीं आगे
ओ छूट देखे नहीं आगे दुःख पीछे पीछे भागे जग सूना सूना
लागे बिन तोरे प्रेम सुधा, मोरे साँवरिया, साँवरिया
प्रेम सुधा इतनी बरसा दो जग जल थल हो जाये
आज सजन मोहे अंग लगालो जनम सफ़ल हो जाये
मोहे अपना बनालो ओ मोहे अपना बनालो
मोरी बाँह पकड़ मैं हूँ जनम जनम की दासी
मोहे अपना बनालो मोरी बाँह पकड़ मैं हूँ
जनम जनम की दासी मोरी प्यास बुझा दो मनहर गिरिधर
प्यास बुझा दो मनहर गिरिधर प्यास बुझा दो मनहर गिरिधर
मैं हूँ अन्तर्घट तक प्यासी प्रेम सुधा मोरे साँवरिया, साँवरिया
प्रेम सुधा इतनी बरसा दो जग जल थल हो जाये
आज सजन मोहे अंग लगालो जनम सफ़ल हो जाये
हृदय की पीड़ा देह की अग्नि सब शीतल हो जाये
आज सजन मोहे अंग लगालो जनम सफ़ल हो जाये