हो साथ अगर पहलू में इक मस्त-ए-शबाब
इक जाम हो और हाथ में शेरों की क़िताब
इक साज़ हो और साज़ पे गाती हो हसीना
बन जाए ये वीराना बहारों का जवाब
बन जाए ये वीराना बहारों का जवाब
मंडवे तले ग़रीब के, दो फूल खिल रहे हैं
मंडवे तले ग़रीब के, दो फूल खिल रहे हैं
ऐ रात तू न जाना, ऐ चाँद तू न जाना
ये नौबहार, चुपके से देखो, नज़रें न तुम मिलाना
मंडवे तले ग़रीब के, दो फूल खिल रहे हैं
मौसम-ए-इश्क़ है, ज़रा होश सम्भाल
हासिल तुझे महबूब है, अर्माँ निकाल
कुछ बात तो करले, नहीं कल की ख़बर
क्या है ग़म-ए-दुनिया, उसे ख़ाक़ में डाल
क्या है ग़म-ए-दुनिया, उसे ख़ाक़ में डाल
मंडवे तले ग़रीब के, दो फूल खिल रहे हैं
मंडवे तले ग़रीब के, दो फूल खिल रहे हैं