आ आ आ आ आ आ
याल कधी हो घरी घरधनी
याल कधी हो घरी घरधनी
उगाच आले मन अंधारून
उगाच आले मन अंधारून
भीती दाटली उरी आ आ
याल कधी आ आ
याल कधी
याल कधी हो घरी घरधनी
याल कधी हो घरी
आ आ आ आ आ
असाल कोठे कुठल्या ठायी
कुठे चालली घोर लढाई
रक्त गोठते म्हणती तेथे
बर्फाच्या डोंगरी आ आ
याल कधी आ आ
याल कधी
याल कधी हो घरी घरधनी
याल कधी हो घरी
हे दुबळेपण मज न शोभते
हे दुबळेपण मज न शोभते
सुदैवेच हे दु:ख लाभते
सात पिढ्यांनी अशीच केली
देशाची चाकरी आ आ
याल कधी आ आ
याल कधी
याल कधी हो घरी घरधनी
याल कधी हो घरी
वीरपत् नी मी वीरकन्यका
गिळून टाकीन व्यथा हुंदका
नका तुम्हीही घरा आठवू
शर्थ करा संगरी
संगरी